Prashant Bhushan Court Contempt Case : सुप्रीम कोर्ट ने आज प्रशान्त भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराते हुए 1 रुपये का जुर्माना देने की सजा सुनाई। प्रशान्त भूषण को यह जुर्माना 15 सितम्बर तक अदा कर देना है। ऐसा न करने की दशा में प्रशान्त भूषण को तीन माह की सजा और तीन वर्षों तक वकालत पर प्रतिबन्ध का सामना करना पड़ेगा।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह सजा प्रशान्त भूषण द्वारा न्यायपालिका के विरूद्ध आपत्तिजनक ट्वीट करने के लिए दी है। 14 अगस्त को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति अरुण मिश्र, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने वकील प्रशान्त भूषण को इस मामले में दोषी ठहराया था। पीठ द्वारा यह कहा गया कि अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता, परन्तु दूसरों के अधिकार क्षेत्र का सम्मान भी जरूरी है।
प्रशान्त भूषण द्वारा किये गये ट्वीट
प्रशान्त भूषण द्वारा 27 जून व 29 जून को किये गये दो ट्वीट्स में सुप्रीम कोर्ट के विरूद्ध आपत्तिजनक ट्वीट किये थे।
27 जून को किये गये पहले ट्वीट में प्रशान्त भूषण द्वारा कहा गया कि पिछले छह वर्षों में भारत में आपातकाल के बिना भी लोकतंत्र नष्टप्राय हो चुका है। और में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके बाद प्रशान्त भूषण द्वारा पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका पर सवाल भी उठाया गया। 29 जून को दूसरे ट्वीट में उन्होंने सीजेआई एसए बोबड़े द्वारा हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल के साथ शेयर किये गये फोटो पर सुप्रीम कोर्ट के लॉकडाउन पर आलोचना की थी।
Prashant Bhushan Court Contempt Case : सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही
27 जून व 29 जून को किये गये दो ट्वीट्स का संज्ञान लेते हुए वकील मेहेक माहेश्वरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर प्रशान्त भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करने की मांग की थी। माहेश्वरी की याचिका पर अदालत ने स्वयं प्रस्ताव द्वारा मुकदमा दायर कर 22 जुलाई को प्रशान्त भूषण को नोटिस जारी कर प्रतिक्रिया मांगी। साथ ही अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को नोटिस भेजकर व्यक्तिगत क्षमता से सलाह मांगी।
प्रशान्त भूषण द्वारा 2 अगस्त को अपनी प्रतिक्रिया में कहा गया कि उन्होंने अपने अभिव्यक्ति की आजादी के अन्तर्गत अपने विचार व्यक्त किये है। साथ ही प्रशान्त भूषण द्वारा पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के जजों की की गयी आलोचना का हवाला देते हुए माफी मांगने से इन्कार किया। तीनों न्यायमूर्ति द्वारा पूरी सुनवाई की और 5 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया गया।
निर्णय में पीठ द्वारा कहा गया कि ट्वीट्स में सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ लगाये गये आरोप दुर्भावनापूर्ण है। ट्वीट के द्वारा शीर्ष अदालत पर लांछन लगाने का प्रयास किया गया है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा पीठ को सुझाव दिया गया कि प्रशान्त भूषण को आगे से ऐसा नहीं करने की चेतावनी देते हुए माफ किया जाये। पीठ द्वारा भूषण को अपना वक्तव्य वापस लेने पर विचार करने के लिए वक्त भी दिया गया। परन्तु भूषण अपने कृत्य पर अड़े रहे।
24 अगस्त को प्रशान्त भूषण द्वारा अपने ट्वीट को लेकर कहा कि उनके द्वारा व्यक्त किये गये विचार उनका प्रतिनिधित्व करते है, फलस्वरूप इसको लेकर माफी मांगना उनके लिए इमानदारी नहीं कही जायेगा। अतएव वे अपने वक्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे और शीर्ष अदालत द्वारा दी गयी सजा स्वीकार करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अटार्नी जनरल के सुझाव के जवाब में कहा गया कि जब तक प्रशान्त भूषण सुप्रीम कोर्ट से अपने ट्वीट के लिए खेद व्यक्त नहीं करते, उन्हें माफ नहीं किया जा सकता। साथ ही इस मामले में सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रख दिया।
14 अगस्त को दोषी ठहराये जाने के बाद से अब तक प्रशान्त भूषण को अनेक अवसर मिले, जिसमें वे चाहते तो अपने ट्वीट के लिए खेद व्यक्त कर सजा से बच सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। भारत में यह पहला ऐसा मामला होगा, जिसमें ट्वीट को आधार बनाकर सजा सुनाई गई है।