ISRO RLV Testing: ISRO द्वारा निर्मित भारत का प्रथम Reusable Launch Vehicle (RLV) (पुनः प्रयोग हो सकने वाले अंतरिक्ष वाहन) की ग्राउंड लैंडिंग टेस्ट को 2020 के नवम्बर या दिसंबर तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने भारत के पहले मानव अंतरिक्ष अभियान के लिए अपनी तैयारियों को और तेज करते हुए साल 2020 के अंत तक अंतरिक्ष में यात्रियों को ले जाने वाले यान(स्पेस शटल) की शुरुआती परीक्षण करने की तैयारी में है।
क्या है ISRO RLV Testing?
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का लक्ष्य एक ऐसे अंतरिक्ष यान को बनाने का है जिसे हम बार-बार इस्तेमाल कर सकें। इससे अंतरिक्ष अभियानों में लगने वाले कीमती समय और धन दोनों की बचत संभव है। अमेरिका और रूस के पास ऐसे अंतरिक्ष यान मौजूद है।
आईएएनएस से बात करते हुए विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के निदेशक एस. सोमनाथ ने बताया कि “इसरो इस साल नवम्बर/दिसंबर तक भारत के पहले अंतरिक्ष यान के प्रोटोटाइप के लैंडिंग परीक्षण को करने के लिए तैयार है। इसे कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में एक खास मिलिट्री लैंडिंग रनवे पर करने की योजना है।”
उन्होंने इस परीक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रोटोटाइप को किसी रॉकेट से न करते हुए, इसे एक हेलीकॉप्टर के माध्यम से सम्पन्न कराया जाएगा। इसके लिए वायुसेना के MI-17 हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाएगा। जो कि इस प्रोटोटाइप को 4 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ेगा, इसके बाद इसमे लगे पैराशूट इसे नीचे लाएंगे और ये चित्रदुर्ग जिले में मौजूद हवाई पट्टी पर लैंड करेगा।
इस परीक्षण के लिए इसे हेलीकॉप्टर से इंटरफेस किया गया है तथा लैंडिंग गियर का भी परीक्षण किया जाएगा।
Reusable Launch Vehicle (RLV) की विशेषताएं

Reusable Launch Vehicle (RLV) भविष्य में इसरो के मानव मिशन में उपयोग होने वाले अंतरिक्ष यान का एक शुरुआती मॉडल है। जिसे विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के लिए बनाया गया है। इसके परीक्षणों से प्राप्त नतीजों से भविष्य के अंतरिक्ष यानों को बनाया जाएगा।
सीधे शब्दों में कहें तो RLV को एक हेलीकॉप्टर की सहायता से हवा में 4 किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ा जाएगा इसके बाद यह एक विमान की तरह निर्धारित हवाई पट्टी पर लैंड करेगा।
वर्ष 2016 में भी इस प्रोटोटाइप का एक परीक्षण आयोजित किया गया था जिसमे इसके गति और ऊष्मा को रोकने वाले कवच को सफलतापूर्वक टेस्ट किया गया था। इस परीक्षण में यान को एक रॉकेट की सहायता से वायुमंडल में 65 किलोमीटर की ऊंचाई में टेस्ट किया गया जहाँ इसकी गति मैक 5(ध्वनि की गति से 5 गुना अधिक) तक रिकार्ड की गई थी।
सोमनाथ ने बताया कि इस परीक्षण से जुड़े करीब 35 वैज्ञानिकों को चित्रदुर्ग जिले में भेजा जा रहा है जो लगभग दो सप्ताह वहां रह कर परीक्षण पर अध्ययन करेंगे।
साल के अंत तक SSLV का भी परीक्षण संभव
इसरो कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर काम कर रही है इसमे से एक स्वदेशी स्माल सैटेलाइट लांच व्हीकल (SSLV) का भी परीक्षण करने की योजना पर काम कर रहा है। इस लांच व्हीकल का उपयोग हल्के और एकल मिशन में किया जाएगा। इससे देश को काफी आर्थिक लाभ भी होगा, साथ ही इसकी सहायता से छोटे और कम कीमत के सैटेलाइट लो लांच करने की सुविधा होगी। इससे इसरो को साल में कई मिशन को करने की सुविधा होगी।
सैटेलाइट लांच के क्षेत्र में लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा और इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों के भारी निवेश से सैटेलाइट को कम से कम कीमत में लांच करने वाले रॉकेट की काफी मांग है। इसी जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य से इसरो SSLV के निर्माण में प्रयत्नशील है। साथ ही इसरो द्वारा भारत की कुछ प्राइवेट कंपनियों को भी ऐसे रॉकेट के निर्माण और लॉन्चिंग में सहायता दी जा रही है।इन कंपनियों में Skyroot और Agni जैसी कंपनियां प्रमुख है।